वृक्षासन का नामकरण –
इस आसन में शरीर की आकृति वृक्ष के समान होने के कारण इसे वृक्षासन कहते है।
वृक्षासन की विधि –
इस आसन में हम खड़े होकर ऑखों की सीधी में किसी बिन्दु पर दृष्टि को स्थित करते हैं, दाहिने पैर को मोड़कर उसके पंजे को अर्ध पद्मासन की स्थिति में बायीं जाँघ पर रख लेना है ओर एक वृक्ष की भाँति स्थिर अवस्था में खड़े होना है। हाथों को प्रणाम की मुद्रा में छाती से लगा लेना है और दायें घुटने को मोड़ते हुए, शारीरिक सन्तुलन बनाये रखते हुए धीरे-धीरे नीचे आना है। दाहिने पैर के घुटने को जमीन पर रखना है। इस अन्तिम स्थिति में कुछ देर रूकना है। फिर धीरे-धीरे शरीर को ऊपर उठाते हुए दायें घुटने को सीधा कर प्रारम्भिक स्थिति में आ जाना है। बायें पैर को सीधा कर जमीन पर रख लेना है। यह है वातायनासन। इसे महर्षि घेरण्ड ने वृक्षासन की संज्ञा दी है।
श्वास – प्रारम्भिक स्थिति में एक पैर पर खडे रहते हुए श्वास लें। शरीर को नीचे झुकाते एवं वापस ऊपर लाते समय श्वास रोके रहे। अन्तिम स्थिति में सामान्य श्वास लें। प्रारम्भिक स्थिति में वापस आकर श्वास छोडे़ं। शारीरिक सन्तुलन को बनाये रखने पर। ध्यान को अनाहत चक्र में केन्द्रित किया जाता है।
वृक्षासन से लाभ –
1. इस आसन का अभ्यास अन्तुल की प्राप्ति के लिए, पैरों की मांसपेशियों और उदर क्षेत्र को मजबूत बनाने के लिए किया जाता है।
2. यह वृक्क एवं मूत्राशय की अतिक्रियाशीलता को कम करता है।
3. यह ब्रह्मचर्य का पालन के लिए वीर्य रक्षा को क्षमता विकसित करता है।
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