उत्कट आसन का नामकरण – इसका उत्कट आसन नाम इसलिए पड़ा कि इसमें बैठने से उत्सुकता झलकती हैं उत्सुकता के समय आदमी इसी प्रकार बैठता है ताकि यदि जल्दी से कुछ काम करना हो तो तुरंत उठ जायें। पंजे और एड़ियाँ परस्पर जुड़ी हुई रहती हैं।
उत्कट आसन की विधि – सामान्य रूप से हम उत्कट आसन का अभ्यास इस प्रकार करते हैं- सीधे खड़े होकर पैरों के बीच कमर की चौड़ाई जितनी दूरी रखते हैं और घुटनों को मोड़ लेते हैं। हाथों को घुटनों पर रख देते हैं। यह सबसे सरल तरीका है। लेकिन उसकी अन्तिम अवस्था दूसरी है। वह भी बहुत सरल है। अन्तिम अवस्था में दोनों पैरों को आपस में सटाकर रखते हैं। अब जिस प्रकार ताड़ासन में पंजो को ऊपर उठाते हैं, उसी प्रकार ऊपर उठते हैं और उसी अवस्था में फिर घुटनों को फैलाते हुए इस प्रकार बैठते हैं कि एडी़ गुदा द्वार से लग जाये। घुटने ऊपर रहते हैं। दोनों हाथ घुटनो पर रहेंगे। घुटनों को जमीन से नहीं लगाना है, वे ऊपर रहेंगे। केवल पंजों पर शरीर का भार रहेगा और एड़ियाँ गुदा-द्वार से सटी हुई रहेंगी।
उत्कट आसन से लाभ – 1. यह बहुत सरल आसन है। इसमें शारीरिक सन्तुलन का ध्यान रखना आवश्यक है।
2. यह शारीरिक सन्तुलन को पक्का बनाने के लिए, संतुलन समूह के आसनों में से एक है।
3. जाँघों की माँसपेशियों को पुष्ठ बनाता है।
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