सीत्कारी प्राणायाम का अर्थ एवं परिभाषा –
सी + त + कारी अर्थात इस प्राणायाम को सीत की आवाज करते हुए करने के कारण इसे सीत्कारी प्राणायाम कहते हैं। इस प्राणायाम में पूरक के समय ‘सी’ की तथा पूरक समाप्त होने पर ‘त’ की आवाज आती है।
सीत्कां क्॒र्यात्तथा बक्प्ने प्राणेनेव विजुम्भिकाम्।
एवमभ्यासयोगेन कामदेवो द्वितीयकः॥
मुख से सीत्कार (सी-सी की आवाज) करते हुए पूरक करना चाहिए और रेचक केवल नासिका से ही करना चाहिए। इस प्रकार से अभ्यास करते हुए साधक दूसरा कामदेव जैसा हो जाता है।
सीत्कारी प्राणायाम की विधि –
किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठते हुए मेरुदंड को सीधा रखें। ज्ञानमुद्रा में बैठें। दाँतों को एक दूसरे के ऊपर दबाकर रखें तथा होंठ खुले हुए रखें, फिर सी-सी की आवाज करते हुए मुँह से श्वास लें तथा ‘त’ के साथ कुंभक करते हुए जालंधर बंध लगाएं। पर्याप्त कुंभक करने के बाद जालंधर बंध खोलें तथा नासिका से रेचक करें। यह एक सीत्कारी प्राणायाम हुआ। इस तरह से कई बार इस क्रिया को करना होता है।
सीत्कारी प्राणायाम से लाभ –
सीत्कारी प्राणायाम से निम्नांकित लाभ होते हैं –
(1) यह प्राणायाम थ्षुधा, तृष्णा, निद्रा, आलस्य आदि में लाभकारी होता है।
(2) शरीर तेजस्वी बनाता है।
(3) चित्त, दंत, पायरिया, मुँह में ला आदि के लिए यह लाभकारी है।
(4) इस प्राणायाम को करने से शरीर गौरवर्ण हो जाता है।
सीत्कारी प्राणायाम की सावधानियाँ –
रेचक को मुँह से नहीं करना चाहिए।
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