सुखासन का नामकरण – यह आसन सबसे सरल है इसलिए इसे सुखासन कहते हैं। सभी लोग इस आसन में बैठ सकते हैं। इसका दूसरा नाम मुक्तासन भी है।
सुखासन (Sukhasana) योग विज्ञान के सबसे सरल आसनों में से एक है। सुखासन को हठ योग के सबसे साधारण और सरल आसनों में से एक माना जाता है। सुखासन का शाब्दिक अर्थ सुख से बैठना है।
वैसे ‘सुखासन’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला शब्द है सुख जिसका अर्थ ‘आराम’ या ‘आनंद’ है। जबकि आसन का अर्थ बैठना होता है। सुखासन को ईजी पोज/ डीसेंट पोज या प्लीजेंट पोज (Easy Pose/Decent Pose/Pleasant Pose) भी कहा जाता है।
सुखासन को किसी भी उम्र और लेवल के योगी कर सकते हैं। बैठकर किया जाने वाले सुखासन सरल होने के साथ ही उपयोगी भी है। इस आसन के अभ्यास से घुटनों और टखने में खिंचाव आता है। इसके अलावा ये पीठ को भी मजबूत करने में मदद करता है।
सुखासन कई रोगों को दूर करने में भी मदद करता है। कई मानसिक और शारीरिक बीमारियां भी इसके नियमित अभ्यास से ठीक होती देखी गईं हैं। इसके नियमित अभ्यास से चक्र और कुंडलिनी जागरण में भी मदद मिलती है।
सुखासन का अभ्यास दंडासन, वज्रासन, उत्तानासन, बालासन, धनुरासन को पूर्ण करता है। आइये जानते हैं सुखासन के फायदे, विधि और सावधानियों के बारे में।
सुखासन की विधि – सर्वप्रथम पैरों को सामने फैला लेते हैं। बाएँ पैर को मोड़कर दाईं जाँघ के नीचे रखते हैं तथा जितना हो सके शरीर के समीप लाने का प्रयास करते हैं फिर दाएँ पैर को बाएँ पैर के ऊपर रख देते हैं। सिर, धड़ एक सीध में रहें। हाथों को ज्ञानमुद्रा में या चिन्मुद्रा में रखते हैं तथा आँखें बंद रखते हैं। यही सुखासन है।
श्वास –– श्वास-प्रश्वास सामान्य।
सुखासन से लाभ –
(1) सुखासन ध्यान का सरलतम तथा सबसे सुविधाजनक आसन है।
(2) यह आसन किसी प्रकार का तनाव या दर्द उत्पन्न किए बिना शारीरिक तथा मानसिक संतुलन प्रदान करता है।
(3) जो लोग ध्यान के अन्य कठिन आसनों में नहीं बैठ सकते वे इसका प्रयोग कर सकते हैं।
सुखासन की सावधानियाँ –
(1) अधिक दबाव एड़ी द्वारा नहीं डालना चाहिए।
(2) झटके के साथ नहीं करना चाहिए।
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