योग (yog) क्या है अर्थ परिभाषा | लाभ एवं सावधानियां, योग की विधि

प्रार्थना – अपनी पूरी शक्ति से प्रयत्न करने के पश्चात जो कुछ कमी, महसूस हो, उसकमी को पूरा करने के लिए अपने से बड़ों को विनम्रतापूर्वक सहायता के लिए कहना ही प्रार्थना है।

सर्वे भवन्तु सुखिनः – सब सुखी रहें।

सर्वे सन्तु नीरोमया – सब निरोगी रहें।

सर्वे भद्राणि पश्यंतु – सब परआपकी कृपा हो।

माँ कश्चिद् दुखः भाग भवेत् – कोई भी किसी दुःख से पीड़ित न रहे।

योग (yog) क्या है | योग की परिभाषा महत्व एवं उनके प्रकार इन हिंदी

योग

योग (yog) का अर्थ – योग का अर्थ है, एक सुखमय जीवन जीने का आनंद।कोई भी कार्य अपने मन – तन और आत्मा की समर्थन के साथ करे जिसमें आपकी अन्तर आत्मा आपके साथ निडर रूप से आपका साथ दे रहे हो, वह योग (yog) है। हमारा शरीर स्वस्थ रहेगा तो मन स्वस्थ रहेगा और मन स्वस्थ रहेगा तो हमारे आत्मा स्वस्थ रहेगी और इन सब से हम सदैव निरोगी रहेंगे यह सब योग से केवल योग से ही संभव है। योग हमारे शरीर की शुद्धि हमारे मन, शरीर, आत्मा और लोभ, माया, कुविचार, क्रोध, घृणा, घमंड,इत्यादि इन सब की शुद्धि है।

योग (yog) की परिभाषा महत्व –

व्यक्तित्व का पूर्ण विकास – जब हमारी शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्तियों का धीरे- धीरे विकास होता हुआ अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता है तो वह व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कहलाता है।

आत्मा का परमात्मा से मिलन – जैसे – जैसे हमारी आत्मा पवित्र और सबल होती जाती है वैसे – वैसे हम परमात्मा के नजदीक होने लगते है। इस स्थिति की ओर बढ़ते – बढ़ते हमें परमानन्द की अनुभूति होने लगती है। आत्मा परमात्मा के मंगल – मिलन की इस अवस्था को योग (yog) कहते है।

चित्त की वृत्तियों का निरोध – चित का अर्थ है मन और वृत्ति का अर्थ है व्यवहार या बरताव जिस वस्तु के प्रति हम जैसा सोचते या व्यवहार करते है उसे वृति कहते है।हमारी वृत्तियों के आधार पर जो – जो विषय आत्मा को ठीक लगते है वही चित यानि मन द्वारा आत्मा के सम्मुख लाये जाते है।

कर्मो में कुशलता – किसी कार्य को शुरू करके उस कार्य में आई सभी कष्ट या समस्याओं को भोगते हुए उस कार्य में सफल हो जाना ही कर्मों में कुशलता है।

समत्व में रहना – दुःख और सुख दोनों ही परिस्थितियों में अपने मन की शांति और स्थिरता को बनाये रखने एवं लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते रहना ही समत्व कहलाता है।

योग (yog) के प्रकार –

योग निम्न चार प्रकार के होते है।

1. राज योग

2. भक्ति योग

3. कर्मयोग

4. ज्ञान योग

योग (yog) की भ्रांतियां | योग करने की विधि, योग अभ्यास के बारे में

योग

योग (yog) की भ्रांतियां –

योग – अकर्मणयता नही – अपने कर्तव्य का पालन न करके संसार से ऊबकर, डरकर, घबराकर अलग – थलग पड़ जाना योग (yog) नहीं अकमर्णय प्रगति वाले लोगों को ऐसा लगता है कि यदि वे कुछ नहीं करेंगे तो न पाप के भागी होंगे न पुण्य के, इस प्रकार कर्मों के फल के बढ़ने से मुक्त हो के योगी बन जायेंगे किन्तु हाथ पर हाथ रखकर कुछ न करने की परवर्ती आपको योगी नहीं बना सकती।

योग – तामसिक तप भी नहीं – अपने शरीर को व्यर्थ के कष्ट देना, जैसे घंटो एक पांव पर खड़े रहना, एक हाथ को आकाश की ओर उठाये महीनों खड़े रहना, कई दिनों तक जमीन के अंदर बिना हवा,पानी और भोजन के रहना, साँस की गति रोकना आदि योग (yog)  नहीं।

योग करने की विधि –

1. अभ्यास सदैव समतल जमीन पर दरी, मेट या कम्बल बिछाकर करें।

2. स्थान साफ – सुथरा, खुला और हवादार हो।

3. सामान्य तापमान में अभ्यास करें।

4. यदि किसी कारण से प्रातः अभ्यास न कर सके तो दोपहर के भोजन के तीन – चार घंटे बाद सायं काल में अभ्यास करें।

5. नियमित समय और स्थान पर अभ्यास करने का प्रयास करें।

6. ऋतू के अनुसार ढीले – ढाले वस्त्रों का प्रयोग योग करें।

7. अभ्यास प्रतिदिन करना चाहिए किन्तु अधिक बुखार, असहनीय दर्द या जब मन बहुत उदास हो अभ्यास नहीं करे।

8. अभ्यास करते समय शारीरिक कष्ट बढ़ने पर अभ्यास न करे और योगाचार्य से परामर्श ले।

9. लड़कियां मासिक धर्म के दिनों में अभ्यास न करें।

10. प्रारम्भिक अभ्यास हमेशा शिक्षक की देख – रेख में करना बेहतर है।

योग (yog) अभ्यास के बारे में –

1. अभ्यास के पूर्व एवं पश्चात प्रार्थना करें।

2. पीठ के बल लेटने के लिए पहले बायीं या दायीं करवट ले और उसके बाद सीधा लेट जायें इसी प्रकार उठते समय भी पहले बायीं या दायीं करवट लेट कर हाथों का सहारा लेते हुए उठकर बैठ जाये और सीधे पीठ के बल न लेते न उठे।

3. सभी अभ्यासों के बाद विश्राम जरूरी है। पीठ के बल किए जाने वाले अभ्यासों में श्वासन और पेट के बल किए जाने वाले अभ्यासों में मकरासन दोनों अभ्यासों में सांस सामान्य रखें।

4. बैठकर किए जाने वाले अभ्यास सुखासन, पद्मासन या वज्रासन में से किसी भी आसन में कर सकते है।

5. बैठकर किए जाने वाले अभ्यासों में कमर, गर्दन और सिर सीधा रखें।

6. क्रियाओं को जबरदस्ती या झटके के साथ नहीं करना चाहिए।

7. अपनी सामर्थ्य के अनुसार अभ्यास करें, क्षमता से न कम न ज्यादा।

योग (yog) अभ्यास कैसे करें –

1. हर – क्रिया आसन को साँस भर कर और भीतर रोककर करें जब साँस छोड़ना हो पहले शरीर को ढीला छोड़ दें फिर साँस निकल दें।

2. शवासन या मकरासन में विश्राम अपनी सुविधा के अनुसार, श्वास सामान्य होने तक करें।

3. श्वास नाक से ही ले और नाक से ही छोड़े।

4. आँखें बंद करके अभ्यास करे, जिससे मन की एकाग्रता बनी रहें।

5. प्रसन्न मुद्रा में अभ्यास करे और माथे और चेहरे को तनाव – मुक्त करते रहें।

6. अभ्यास करते समय पूरा ध्यान अभ्यास में रखे और जिन – जिन मांसपेशियों पर अधिक खिंचाव पड़ रहा है उनको महसूस करें।

7. विश्राम करते समय मांसपेशियों पर पड़े प्रभाव को महसूस करें।

योग (yog) स्वास्थ्य लाभ | योगाभ्यास और अन्य व्यायामों में अंतर

स्वास्थ्य की उपयोगिता –

हम जब कभी बीमार या अस्वस्थ होते है तो – न खेल पाते, न ढंग से खा पाते, न घूमने जा सकते, न पढ़ सकते, न अपना कोई काम कर सकते और न ही किसी की मदद कर सकते है तो स्पष्ट हुवा कि यदि हमारा स्वास्थ्य ठीक नहीं होगा तो हम कोई भी कार्य करने योग्य नहीं रह पाते है। इसलिए किसी भी कार्य को सही रूप से करने के लिए स्वस्थ होना बहुत महत्त्वपूर्ण हे यह स्वस्थता शरीर और मन दोनों में होनी आवश्यक है। स्वस्थ मन एक स्वस्थ शरीर में ही हो सकता है। ऐसा व्यक्ति ही हर कार्य पुरे ध्यान से कर सकेगा शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखने के लिए योगाभ्यास बहुत ही लाभदायक हो सकता है।

योगाभ्यास और अन्य व्यायामों में अंतर –

1. योगाभ्यास के लिए विशेष साधन नहीं चाहिए जबकि अन्य व्यायामों में बहुत से साधन की आवश्यकता होती है।

2. योग क्रियाएँ हमारे शरीर को अंदर से स्वस्थ रखने की क्रियाए है और योगाभ्यास करने के बाद हम पहले से ज्यादा चुस्त रहते है जबकि अन्य व्यायामों को करने के बाद हमें थकावट महसूस होती है और हमें आराम की आवश्यकता पड़ती है।

3. योगाभ्यास में शरीर के अन्दर की मांसपेशिया और अंगों का व्यायाम होने से वे मजबूत एवं पुष्ट होते है।जबकि अन्य व्यायामों से हमारी बाह्य मांसपेशिया पुष्ट होती है जो दिखने में अच्छी होती है परन्तु उनका धीर्गकालीन महत्त्व कम होता है।

4. योग क्रियाओं में शरीर और मन का समन्वय होता है, एकाग्रता बढ़ती है और प्रतियोगिता की भावना नहीं होती जबकि अन्य व्यायामों में प्रतियोगिता की भावना मुख्य होती है, जिससे क्रोध या ईर्ष्या के बढ़ने की संभावना सदैव रहती है।

योग (yog) में मुद्रा के प्रकार | योग से रोगों का इलाज इन हिंदी

yog

योग (yog) में मुद्रा के प्रकार –

इन योग मुद्रा को शांत वातावरण में अकेले में करना चाहिए, हर योग मुद्रा करने का अपना अलग – अलग समय होता है।

1. ज्ञान मुद्रा

2. वायु मुद्रा

3. अग्नि मुद्रा

4. वरुण मुद्रा

5. प्राण मुद्रा

6. पृथ्वी मुद्रा

7. शून्य मुद्रा

8. सूर्य मुद्रा

9. लिंग मुद्रा

10. अपान मुद्रा

योग (yog) से रोगों का इलाज एवं उपचार –

योग

1. पेट की बीमारियों के लिए योग –

1. उत्तानपादासन

2. पवनमुक्तासन

3. वज्रासन

4. योगमुद्रासन

5. भुजंगासन

6. मत्स्यासन

2. सर की बीमारियों के लिए योग –

1. सर्वांगासन

2. शीर्षासन

3. चंद्रासन

3. मधुमेय के लिए योग –

1. पश्चिमोत्तासन

2. वज्रासन भुजंगासन

3. हलासन

4. शीर्षासन

4. वीर्यदोष के लिए योग –

1. सर्वांगासन

2. वज्रासन

3. योग मुद्रा

5. गले के लिए योग –

1. सुप्तवज्रासन

2. भुजंगासन

3. चंद्रासन

6. आँखों के लिए योग –

1. सर्वांगासन

2. शीर्षासन

3. चक्रासन

4. भुजंगासन

7. गठिया या आर्थराइटिस के लिए योग –

1. पवनमुक्तासन

2. सुप्तवज्रासन

3. पद्मासन

4. मत्स्यासन

5. उष्ट्रासन

8. नाभि के लिए योग –

1. धनुरासन

2. भुजंगासन

3. नाभि आसन

9. गर्भाशय के लिए योग –

1. उत्तानपादासन

2. भुजंगासन

3. सर्वांगासन

4. ताड़ासन

10. कमर दर्द के लिए योग –

1. हलासन

2. भुजंगासन

3. चक्रासन

4. धनुरासन

11. बवासीर के लिए योग –

1. उत्तानपादासन

2. सर्वांगासन

3. जानुशीर्षासन

12. दमा के लिए योगासन –

1. सुप्तवज्रासन

2. मत्स्यासन

3. भुजंगासन

13. यकृत के लिए योग –

1. भुजंगासन

2. उष्ट्रासन

3. कपालभाति प्राणायाम

4. पवनमुक्तासन

14. फेफड़ो के लिए योग –

1. वज्रासन

2. मत्स्यासन

3. सर्वांगासन

15. अनिंद्रा के लिए योग –

1. शीर्षासन

2. सर्वांगासन

3. योगमुद्रासन

4. हलासन

16. गैस के लिए योगासन –

1. पवनमुक्तासन

2. जानुशिर्षासन

3. योगमुद्रा

4. वज्रासन

17. जुखाम के लिए योग –

1. शीर्षासन

2. सर्वांगासन

3. हलासन

18. मानसिक शांति के लिए योग (yog) –

1. सिद्धासन

2. योगमुद्रासन

3. सतुरमुर्गासन

4. खगासन

19. रीढ़ की हड्डी के लिए योग (yog) –

1. सर्पासन

2. सर्वांगासन

3. पवनमुक्तासन

20. ह्रदय के लिये योग –

1. शवासन

2. साइकिल संचालन

3. सिद्धासन

21. रक्तचाप के लिए योग –

1. योगमुद्रासन

2. सिद्धासन

3. शवासन

4. शक्तिसंचलन

22. पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए योग –

1. नाभि आसन

2. वज्रासन

3. सर्वांगासन

23. मोटापा घटाने के लिए योग –

1. पवनमुक्तासन

2. नाभि आसन

3. वज्रासन

4.सर्पासन

24. बालों के लिए योग –

1. शीर्षासन

2. सर्वांगासन

3.सर्पासन

25. हाइट बढ़ाने के लिए योग –

1. धनुरासन

2. ताड़ासन

3. चक्रासन

4. शक्तिसंचालन

योग (yog) द्वारा ऊर्जा का सिद्धांत –

भोजन से ऊर्जा मिलती है, नींद में उर्जा सग्रहित होती है, जागरण में खर्च होती है, प्राणायाम से जागती है, धारणा से केन्द्रित होती है, भय से सिकुड़ती है, वासना में नीचे गिरती है, प्रेम में विस्तृत होती है, समाधी में विराट के साथ एक होती है, यह ऊर्जा का एक पूरा योग−विज्ञान है।

योग गुरु –

1. स्वामी शिवानन्द सरस्वती

2.परमहंस योगानन्द

3. कृष्ण प्रभु जोइस

4. तिरुमलाई कृष्णमचार्य

5. महर्षि महेश योगी

6. वी के एस आयंगर

7. धीरेन्द्र ब्रह्मचारी

इसे भी पढे – योग आसन करने के लिए सही स्थान और कैसा वातावरण होना चाहिए

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अजितेश कुँवर, कुँवर योगा, देहरादून के संस्थापक हैं। भारत में एक लोकप्रिय योग संस्थान, हम उन उम्मीदवारों को योग प्रशिक्षण और प्रमाणन प्रदान करते हैं जो योग को करियर के रूप में लेना चाहते हैं। जो लोग योग सीखना चाहते हैं और जो इसे सिखाना चाहते हैं उनके लिए हमारे पास अलग-अलग प्रशिक्षण कार्यक्रम हैं। हमारे साथ काम करने वाले योग शिक्षकों के पास न केवल वर्षों का अनुभव है बल्कि उन्हें योग से संबंधित सभी पहलुओं का ज्ञान भी है। हम, कुँवर योग, विन्यास योग और हठ योग के लिए प्रशिक्षण प्रदान करते हैं, हम योग के इच्छुक लोगों को इस तरह से प्रशिक्षित करना सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे दूसरों को योग सिखाने के लिए बेहतर पेशेवर बन सकें। हमारे शिक्षक बहुत विनम्र हैं, वे आपको योग विज्ञान से संबंधित ज्ञान देने के साथ-साथ इस प्राचीन भारतीय विज्ञान को सही तरीके से सीखने में मदद कर सकते हैं।

 

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About Kunwar Ajitesh

Mr. Ajitesh Kunwar Founder of Kunwar Yoga – he is registered RYT-500 Hour and E-RYT-200 Hour Yoga Teacher in Yoga Alliance USA. He have Completed also Yoga Diploma in Rishikesh, India.

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