वारिसार धौति (शंख प्रक्षालन) –वारि = जल, सार = तत्त्व, धौति = धोना अर्थात जल से तत्त्व को धोना। इस क्रिया को कायाकल्प के नाम से भी जानते हैं। शरीर के सभी विषाक्त तत्त्व निकाल दिए जाते हैं, जिससे नवीन शुद्ध तत्त्व निर्मित होता है। इसे शंख प्रक्षालन भी कहते हैं। यह मुख से गुदा मार्ग तक की सफाई की क्रिया है जबकि वातसार धौति का संबंध केवल पेट से दूषित वायु को बाहर निकालने से है।
वारिसार धौति (शंख प्रक्षालन) की विधि, लाभ और सावधानियाँ
वारिसार धौति (शंख प्रक्षालन) की विधि – – सर्वप्रथम दो गिलास कुनकुना नमकीन पानी जल्दी-जल्दी बिना रुके पीते हैं ताकि पानी नीचे आँत में चला जाए। इसके पश्चात् पाँच आसनों का क्रम-ताड़ासन, तिर्यक ताड़ासन, कटिचक्रासन, तिर्यक भुजंगासन और उदराकर्षण आठ-आठ बार करते रहना है जिससे पानी पेट से नीचे उतर जाता है। फिर दो गिलास पानी पीते हैं पुन: इन पाँच आसनों को करते हैं। प्रत्येक आसन आठ बार किया जाता है। इस प्रकार प्रति दो गिलास के पश्चात आसन करने के बाद शौच चले जाते हैं। शौच के लिए 2 मिनट से ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करना है।
यदि मल न निकले तो दबाव नहीं लगाना है। पुनः दो गिलास पानी पीकर आसन करते रहना है और तब तक करते रहना है जब तक स्वच्छ पानी बाहर न निकले। साधारणतया पहले सामान्य मल त्याग होगा फिर पतला, फिर पीले रंग के पानी के साथ मल के कण और उसके बाद साफ पानी निकलेगा। लगभग 16 या 20 गिलास पानी के बाद एकदम स्वच्छ जल निकलता है। इसके बाद यह क्रिया समाप्त कर देनी चाहिए। इसके पश्चात 45 मिनट के श्वासन के बाद हलकी सुपाच्य खिचड़ी घी मिली हुई खानी चाहिए। भोजन के तीन घंटे के उपरांत ही सोना चाहिए। उससे पहले विश्राम की अवस्था में लेट सकते हैं।
वारिसार धौति (शंख प्रक्षालन) के भोजन के नियम – कुछ दिन तक दूध या दूध से बनी चीजें, नींबू, फल, पान एवं किसी प्रकार का व्यसन नहीं लेना चाहिए। मांसाहारी लोगों को मांसाहार, शराब, किसी प्रकार की विषैली दवाई वर्जित है।
वारिसार धौति (शंख प्रक्षालन) के लिए समय एवं आवश्यकता – छ:-छ: महीने के अंतराल पर अर्थात साल में दो बार (भारत के मौसम के अनुसार मार्च और सितंबर उपयुक्त माना गया है) इस क्रिया को कर सकते हैं।
वारिसार धौति (शंख प्रक्षालन) के लाभ – यह क्रिया शरीर को निर्मल बनाती है। यह शुद्धिकरण की श्रेष्ठ क्रिया है। इससे शरीर को शुद्ध किया जाता है। विकारों को दूर किया जाता है। व्यक्ति देवता के समान दिव्य, कांतिमय, ओजस्वी और हल्का शरीर प्राप्त करता है। इस क्रिया के द्वारा शरीर को सभी रोगों से मुक्त रखा जा सकता है।
वारिसार धौति (शंख प्रक्षालन) की सावधानियाँ – वारिसार धौति में निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिए-
(1) खाली पेट ही इस क्रिया को करें। अभ्यास के तीन घंटे तक स्नान वर्जित है तथा ठंडा पानी पीना भी वर्जित है।
(2) उच्च रक्त चाप, चक्कर आना, मिरगी, हृदय रोगी, हर्निया या खूनी बवासीर से पीड़ित व्यक्ति के लिए भी वर्जित कहा गया है। 15 वर्ष को उम्र के बाद ही इस क्रिया को करना चाहिए।
इसे भी पढे – जलनेति क्रिया, रबड़ एवं सूत्र नेति का अर्थ – विधि, लाभ और सावधानियां