जलनेति क्रिया का अर्थ – यह षट्कर्म के अंतर्गत शुद्धिकरण की तीसरी प्रक्रिया है जिसका मुख्य उद्देश्य शीर्ष प्रदेश, मस्तिष्क के क्षेत्र की सफाई करना है। इस क्रिया से दृष्टि से संबंधित नाडियों एवं अन्य आंतरिक नाड़ियों का भी शोधन होता है। नासिका के भीतरी क्षेत्र की भी शुद्धि होती है। हठयोग में दो प्रकार की नेति की चर्चा है। जिसमें पहला जल नेति जो कि बहुत ही प्रचलित अभ्यास है तथा दूसरा सूत्र नेति। सूत्र नेति के समान ही रबड़ नेति का भी अभ्यास किया जाता है। इसके अतिरिक्त नेति क्रिया में दूध, घी, तेल का भी प्रयोग किया जाता है।
जलनेति क्रिया विधि, लाभ और सावधानियाँ की जानकरी इन हिंदी
जल नेति – यह जलनेति क्रिया नासिका से की जाने वाली क्रिया हैं जिसमें टोंटी वाला लोटा जो कि नीसिंका छिद्र में भलीभाँति जम जाए और जल उस नासिका छिद्र से बाहर ने निकले। शरीर के तापमान के बराबर कुनकुना नमकीन जल लेकर एक नासिका छिद्र से डालकर दूसरे से बाहर निकालना है। नमकीन जल में रसाकर्षण दबाव साधारण जल से अधिक होता है जिससे Blood Capillaries और झिल्लियों में नमकीन जल इतनी आसानी से प्रवेश नहीं कर पाता है।
विधि – उकडू या कागासन में बैठकर या कंधे या सिर को आगे झुकाते हुए खड़े होकर टोंटीदार लोटे में कुनकुना नमकीन जल लेकर लोटे की पेंदी की पकड़कर टोंटी नासिका छिद्र में ठीक प्रकार घुसाते हैं ताकि जल बाहर की ओर न गिरे। सिर को एक ओर झुकाकर, पानी को उसके सामान्य दबाव पर दूसरी ओर से बाहर निकलने देते हैं। इस समय मुँह खुला होना चाहिए तथा श्वास-प्रश्वास मुँह से होता रहेगा। इस समय सावधान रहें कि श्वास-प्रश्वास नाक से न हो।
इस प्रकार यही जलनेति क्रिया दूसरी नासिका छिद्र से दुहरा कर नाक को सुखाने हेतु एक को बंद कर दूसरे को छिड़किए। इसके लिए सीधे खड़े होकर आगे झुकते हुए एक अंगूठे से नासा छिद्र को बगल से दबाते हुए जल्दी-जल्दी श्वास लेकर छोड़ते हैं जिससे बचा हुआ जल निष्कासित हो जाता है। इस क्रिया को प्रत्येक दिन भी किया जा सकता है। प्रातःकाल सबसे उपयुक्त समय माना गया है नासिका से संबंधित रोगों में। इसे दिन में दो बार भी किया जा सकता है। आवश्यकतानुसार यह क्रिया करनी चाहिए ।
लाभ – जलनेति क्रिया करने से निम्नलिखित लाभ होते हैं-
(1) कुनकुने जल का पहला प्रभाव सायनस ग्रंथियों पर पड़ता है। ये सायनस ग्रंथियाँ नाक के भीतर श्लेष्मा उत्पन्न करती हैं तथा नासिका के भीतर वायु को शरीर के अनुकूल बनाकर ही फेफड़ों के भीतर जाने देती हैं। यह एक छनित्र (Filter) है। जब कभी नाक भर जाती है तब श्वास नहीं ले पाते हैं क्योंकि इस छनित्र के सभी छिद्र बंद हो जाते हैं। फलत: शरीर के तापमान के अनुसार यह वायु के तापमान को नहीं बदल पाता है। गर्मी के दिनों में कभी-कभी नाक के अंदर श्लेष्मा (Mucus) सूख जाने के कारण नाक में जलन उत्पन्न होने लगती है। सायनस एक स्पंज की भाँति है। यह भ्रूमध्य क्षेत्र में स्थित है। इस क्षेत्र से कई सूक्ष्म नाड़ियाँ जिनका संबंध आँख, कान से तथा कुछ नाड़ियाँ मस्तिष्क के भीतर जाती हैं। ये नाड़ी समूह सायनस से जुड़े रहते हैं।
(2) इससे जुकाम में काफी लाभ होता है।
(3) आँख और कानों से संबंधित कष्ट भी इससे दूर हो जाता है। इसका आधुनिक नाम E.N.T. Care है। अर्थात कान, नाक, गले से संबद्ध क्रिया।
(4) यह क्रिया आँखों की स्वच्छता तथा दृष्टि को सुरक्षित रखने में सहायक होती है। एलर्जी पर भी इसका अत्यंत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
(5) इससे अनिद्रा, थकावट आदि भी दूर होती है।
(6) श्वसन क्रिया सामान्य होने से फेफड़े को शुद्ध एवं उचित मात्रा में ऑक्सीजन मिल पाता है।
सावधानियाँ – जलनेति क्रिया में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
(1) नाक से Blood (रक्त) आने की पुरानी बीमारी में किसी सुयोग्य प्रशिक्षक के निर्देशन में यह क्रिया करनी चाहिए अन्यथा नहीं।
(2) अधिक गर्म जल नाक में नहीं डालना चाहिए।
(3) नाक को ज्यादा जोर से न छिड़कें क्योंकि इससे नाक की नली में चोट आने से खून (Blood) निकल सकता है।
रबड़ एवं सूत्र नेति विधि, लाभ और सावधानियाँ की जानकरी हिंदी
रबड़ एवं सूत्र नेति – इस क्रिया में नासिका छिद्र में सूत्र या कैथेटर (Rubber) डालकर मुँह से बाहर निकालते हैं। यदि नाक के भीतर हड्डी या कार्टिलेज बढ़ जाए तो यौगिक ग्रंथों में सूत्र नेति का अभ्यास बताया गया है। इससे दोनों नासा छिद्रों में उत्पन्न अवरोध दूर किए जाते हैं जिससे प्राण वायु के प्रवाह में आसानी होती है। इस क्रिया में दो प्रकार की वस्तुओं का प्रयोग किया जा सकता है-
(1) लंबी पतली रबर ट्यूब या कैथेटर जो सामान्यत: 4, 5, 6 नं० का उपयोग किया जाता है।
(2) सूती धागों से तैयार सूत्र ।
विधि – उकडू बैठकर या खड़े होकर कैथेटर या सूत्र के पतले सिरे को नासिका छिद्र में घुमाते हुए धीरे-धीरे अंदर डालते हैं। जब नाक से प्रवेश कर गले में प्रवेश करने लगे तब मुँह में अंगुली डालकर उसे बाहर निकाल लेते हैं और दोनों शिरों को पकड़कर आगे-पीछे खींचते हैं और फिर बाहर निकाल लेते हैं। इसके पश्चात जल नेति से नासिका के मार्ग में जमी गंदगी को दूर कर लेते हैं। इन क्रियाओं को प्राय: सुबह करना सर्वोत्तम माना गया है।
लाभ – सूत्र नेति एवं रबड़ नेति से निम्नलिखित लाभ होते हैं-
(1) इससे Mucus Membrane की अच्छी मालिश होती है। रक्त प्रवाह (Blood Flow) बढ़ता है। सायनस ग्रंथि में सूजन कम होती है। बढ़ी हुई हड्डी या मांसपेशी (Muscle) को इस अभ्यास से ठीक किया जा सकता है।
(2) इससे मस्तिष्क शांत होता है तथा तनाव एवं सुस्ती दूर होती है।
(3) आध्यात्मिक लाभ में कहा जाता है कि इसके अभ्यास से आज्ञा चक्र की जागृति होती हैं। जिससे मन शांत होता है तथा एकाग्रता बढ़ती है। ऐसा कहा जाता है कि नेति क्रिया से तीसरा नेत्र खुल जाता है ।
(4) कफ दूर होता है, दृष्टिदोष दूर होता है तथा दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है। खेचरी मुद्रा की सिद्धि प्राप्त होती है।
सावधानियाँ – इस क्रिया में निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिए-
(1) सूत्र या कैथेटर को जबरदस्ती डालने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
(2) यह क्रिया बहुत ही सावधानीपूर्वक एवं धीमी गति से करनी चाहिए। नाक में डालने से पहले इसे अच्छी तरह साफ करना चाहिए।
(3) नाक से Blood आने को शिकायत हो तो इसे न करें या विशेषज्ञ से सलाह के पश्चात करें।
(4) प्रारंभ में रबड़ नेति के अभ्यास में निपुण होने के पश्चात सूत्र नेति का अभ्यास करना चाहिए ।
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