कपालभाति – इसका वर्णन घेरण्ड संहिता के 1/54वें श्लोक में मिलता है-
बातक़मेण व्युत्क्रमेण शीत्क्रमेण विशेषत: ।
भालभाति त्रिधा कुर्यात्कफदोष निवारयेत्॥
वातक्रम कपालभाति व्युत्क्रम कपालभाति और शीतक्रम कपालभाति के भेद से कपालभाति तीन प्रकार की होती है। इसका साधन करने से कफ से उत्पन्न दोषों का निवारण होता है।
इसका उद्देश्य प्राणमय कोष की शुद्धि करना है। इसको शोधन क्रिया के अंतर्गत रखा गया है। यह एक प्राणायाम भी है। कपालभाति का भालभाति के नाम से भी वर्णन किया गया है। भाल का अर्थ ललाट और भाति का अर्थ धोंकनी है।
कपालभाति के प्रकार, विधि, लाभ और सावधानियाँ की जानकरी हिंदी
1. वातक्रम कपालभाति विधि – किसी आरामदायक आसन में बैठकर, रीढ़ की हड्डी सीधी, आँखें बंद, पूरा शरीर श्थिल कर तेजी से पेट भर श्वास लेते हुए पेट की मांसपेशियों पर बल लगाते हुए संकुचित कर बाहर श्वास छोड़ना है। अब धीरे-धीरे बिना प्रयास कर श्वास लेकर पेट की मांसपेशियों पर बिना बल प्रयोग किए आराम से यथासंभव शीघ्र श्वसन क्रिया करना है। उसके बाद गहरी श्वास लेकर रेचक करते हुए फेफड़ों को पूरी तरह खाली कर देना है। श्वास को यथासंभव रोकते हैं, चेहरा तनावमुक्त। यह एक आवृत्ति हुई। प्रारंभ में एक आवृत्ति में 20 बार तेजी से श्वसन क्रिया करना है फिर यथासंभव प्रति सप्ताह 5-10 बढ़ाई जा सकती है। ध्यान भूमध्य पर, यह अभ्यास ध्यान से पूर्व ही करना चाहिए। रात के समय इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए अन्यथा सोने में कठिनाई हो सकती है।
वातक्रम कपालभाति लाभ – वातक्रम कपालभाति से निम्नांकित लाभ होते हैं-
(1) यह पाचन अंगों को उत्प्रेरित कर उसे मसाज देकर शक्तिशाली बनाता है।
(2) यह फेफड़ी को शुद्ध कर उसकी क्षमता बढ़ाता है। अधिकाधिक ऑक्सीजन अदर जाती है तथा कार्बनडाइ आक्साइड बाहर निकलती है।
(3) Bronchitis(ब्रांकाइटिस), Asthma (दमा), Tuberculosis (टीबी) आदि रोगों में इसका अभ्यास लाभदायक सिद्ध होता है।
(4) यह मस्तिष्क के अग्र भाग को शुद्ध करने की एक उत्तम विधि हैं।
(5) यह ध्यान के लिए उत्तम पृष्ठभूमि तैयार करता है।
(6) हठयोगियों के अनुसार इससे इड़ा और पिंगला शुद्ध होती है।
वातक्रम कपालभाति सावधानियाँ – वातक्रम कपालभाति में निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिए-
(1) यदि अभ्यास के समय किसी प्रकार का अनुभव हो-जैसे मिचली (Sensesion of Vomitting) हो तो यह अभ्यास बंद कर दें।
(2) उच्च रक्तचाप (High B.P.), हर्निया, बेचैनी आदि से ग्रस्त व्यक्ति को यह अभ्यास नहीं करना चाहिए।
2. व्युत्कम कपालभाति – यह कपालभाति का दूसरा प्रकार है। इसे व्युत्क्रम या व्युतकर्म भी कहा जाता है।
व्युत्कम कपालभाति विधि– नाक से जल खींचकर, गले में रोकते हुए मुँह से बाहर निकालना ही व्युत्क्रम कपालभाति है। यह नासा छिद्रों, गले और मुँह का भी शोधन करता है।
व्युत्कम कपालभाति लाभ – व्युत्क्रम कपालभाति से निम्नांकित लाभ होते हैं-
(1) यह क्रिया बिंदु चक्र के जागरण में सहायक मानी गई है।
(2) इसका प्रभाव उन नाड़ियों पर भी पड़ता है जो नासा छिद्र के अंत में है।
3. शीतक्रम कपालभाति – यह कपालभाति का तीसरा अभ्यास है। इसमें मुँह से जल खींचकर नाक से बाहर निकालते हैं।
शीतक्रम कपालभाति विधि – मुख से जल खींचकर कुछ समय तक रोकते हुए नासिका से थोड़ा सा निकालते हैं फिर कुछ देर बाद थोड़ा सा निकालना अर्थात रुक-रुक कर नासिका से जल बाहर निकालना है। यहाँ शीतक्रम का अर्थ श्वास के साथ आवाज करते हुए पानी बाहर निकालना है। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में धीरे-धीरे बाहर निकालना है।
शीतक्रम कपालभाति लाभ – शीतक्रम कपालभाति से निम्न लाभ होते हैं–
(1) एवमभ्यासयोगेन कामदेवसमो भवेत् अर्थात इस क्रिया द्वारा व्यक्ति कामदेव के समान दिखने लगता है।
(2) शरीर की अशुद्धियाँ दूर हो जाने से व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है। इससे बिंदु चक्र जाग्रत होने को संभावना रहती है और उससे बिंदु चक्र से अमृत झरता है तब शरीर कांतिवान हो जाता है।
(3) शरीर विकार रहित हो जाता है।
(4) मुखमंडल पर एक विशेष प्रकार की चमक आ जाती है।
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