सिंहासन का नामकरण –
यह सिह गर्जना के आधार पर निर्मित किया गया है। यह सिंहासन नामक आसन सभी रोगों को नष्ट करने वाला है।
श्वास – इस आसन में श्वास सामान्य रहेगी। नासिका से धीमी गति से पूरक करें। तत्पश्चात् ‘आ ह ह ह…. ‘ की ध्वनि उत्पन्न करते हुए मुँह से श्वास छोड़ें। जब हम गले से गर्जना करते हुए श्वास बाहर छोड़तें हैं और तत्पश्चात् उसे पुनः अन्दर लेते हैं, तब तुरंत श्वास नहीं खींचनी है। आवाज करने के बाद श्वास को बाहर ही रोककर, साथ-ही-साथ जालन्धर बन्ध और नासिकाग्र दृष्टि का अभ्यास करना है।
सिंहासन से लाभ –
1. जो लोग ठीक से बोल नहीं पाते, बोलने में पेरशानी होती है, या जिनकी आवाज कर्कश है, मधुर नही है, या हकलाते हैं, उनके लिए तथा गले के स्वर रज्जु, स्वर उत्पन्न करने वाली ग्रन्थी से सम्बद्ध रोगों में अत्यन्त लाभकारी है।
2. टॉन्सिलाइटिस जिसमें मवाद भरता या खून निकलता है (गले में सूजन आ जाती है) दर्द होता है और मुँह के छालों के लिए सिंहासन का अभ्यास उत्तम माना गया है।
3. इससे वक्ष एवं मध्य पट का तनाव दूर होता है। निराश एवं अन्तर्मुखी लोगों के लिए भी यह आसन उपयोगी है। इससे आवाज ओजस्वी एवं सुन्दर होती है। इसमें शाम्भवी मुद्रा के लाभ भी प्राप्त होते हैं।
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